यूँ जब चलती हूँ न मैं, तेरा ख़्याल साथ लेकर, जाने क्यों हर वो खूबसूरत ख़्याल, मेरे होंठों पे हँसी बिखेर देता है, यूँ ही मुस्कराते कभी रास्तों पे पड़े, पत्थरों को ठोकर लगाती हूँ, तो कभी आसमां देख कदम बढ़ाती हूँ, तेरे ख़्याल इतने हसीन होते हैं, कि रास्तों का पता नही चलता, जैसे-जैसे तेरे ख़्याल गहरे होते हैं, मैं उड़ती चली जाती हूँ, वक्त का पता भी नही चलता, कब अपनी मंजिल तक पहुँच गई, तेरा ख़्याल ही मेरे रास्तों के साथी होते हैं, जैसे संग दीया और बाती होते हैं, तेरा ख़्याल ऐसे थामे मेरा हाथ होता है, जैसे कोई हमसफर किसी के साथ होता है! -तन्वी सिंह