ऐ बलात्कारी …. कैसी है तेरी ये बीमारी, क्यों बने तुम हवस के पुजारी, माँ बाप ने जो ज्ञान दिया, तेरे लिए हर पल जान दिया, भूलकर उनकी बाते सारी, बन गया तू बलात्कारी, पूछ! अपनी आत्मा से, बचपन से तू कैसा है, फिर क्यों तू आज ऐसा है? ऐ बलात्कारी ….. सुन ले एक बात हमारी, तू भी किसी का भाई है, जब सरकेगा तेरी भी बहनों का दुपट्टा, लगेगा तब तुझे भी झटका, जैसे तूने तड़पाया है, तू भी एक दिन तड़पेगा, अपने पाप की सजा तू भी तो भुकतेगा, ऐ बलात्कारी ….. दो हाथों की मिली रब से सौगात प्यारी इन हाथो से तू रक्षक बन, ना की तू भक्षक बन, तू तो है एक महान पुरुष, तेरे है कितने ही रूप, कभी तू राम है, कभी शिव, कभी तू कृष्ण है, कभी विष्णु, तुम ईश तू मुहम्मद साहेब का प्राण, अपने बलिदान से..... कितनों की रक्षा की ईश भगवान, हर बुराइयों से लड़.... मुहम्मद ने कितनों को बनाया मुस्लम ईमान, क्यों करता है तू इनका अपमान, अपने स्वरुप को तू ले पहचान, "तन्वी" कहे...... बचा ले हर एक बिटिया की जान |