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Lonely poem। Raat tanhai ki

जिंदगी की भीड़ में जाने क्यों तन्हाई सी छाई थी। लगता था दिल को किसी की याद बहुत आई थी।। यूं लगा जैसे कोई छू के गुजरा मुझे...। देखी पलट के तो पीछे मेरी ही परछाई थी।। बैठे-बैठे देखती रही मै आसमां को रात भर। कितनी खूबसूरत तारों की चमक वहां छाई थी।। चांद छुपा था बादल में फिर भी......। जाने क्यों वह रात आंखों को बहुत भाई थी।। हल्के हल्के हवा के झोंके जब भी चलते। ऐसा लगा मुझे देख पतिया भी गुनगुनाई थी।। वो अंधेरी रात जाने क्यों ऐसी थी यारों। जो दिल में मेरे मोहब्बत फिर जगाई थी।। सन्नाटा था चारों तरफ रास्ते भी थी सूने पड़े..। फिर भी लगा दरवाजे पर दर्द की बारात आई थी।। यह तो होना ही था एक दिन अपनी जिंदगी में। दिल के आशियाने को मोहब्बत से जो सजाई थी।। आंखें तो भर चुकी थी अश्कों की बूंदों से। फिर भी जाने क्यों उस रात में मुस्कुराई थी। । उसकी चाहतो से तो आज भी भरा है दिल मेरा। इसलिए उस रात भी मैं उसे भूल नहीं पाई थी।। पाना चाहते थे दोनों साथ अपने इश्क की मंजिल। लेकिन किस्मत ने ही लिखी अपनी जुदाई थी।। *****