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अगस्त, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पैगाम

कोई कहता मैं हिन्दू  हूँ, कोई कहता मैं मुस्लमान हूँ, लेकिन कोई ये ना कहता मैं एक इन्सान हूँ, क्या हिन्दू और क्या मुस्लमान , क्या यही है आज कल लोगों की पहचान , इसलिए लेते है लोग एक दुसरे की जान, धर्म से किसी इन्सान को ना पहचानों, हर किसी को उसकी काबिलियत से जानों, और हर धर्म को दिल से मानो, हर आदमी यहाँ खुदा का बंदा है, लेकिन हर कोई यहाँ अँधा है, बंधी है पट्टी सबके आखों पे धर्म की, उखाड़ फेका है वो मुखौटा शर्म की, लेकर एक दुसरे की जान, कहते हो मैं हूँ एक अच्छा इन्सान, कैसी ये इन्सानियत है, क्या यही लोगों की नियत है, क्यों करते है लोग यहाँ एक दुसरे से नफरत, क्या लोगों की बस यही है हसरत, ऐ खुदा मेरी तुझसे यही है इबादत, मिटाकर उनकें दिलों से नफरत, भर दो एक दूसरे के लिए मोहब्बत!! *****

उड़ान

अभी तो हमने सिर्फ पंख फैलाए है... अभी तो हमारी पूरी उड़ान बाकी है! हर कोई नजर उठा के देखे आसमां में... बनानी अभी वो अपनी पहचान बाकी है! छोटे है पंख हमारे ये देख मुस्कुराना नही.. अभी तो इन पंखों में पूरी जान बाकी है! हौसलों से ही हम अपनी उड़ान भरते है..... पूरी दुनिया में बनानी अभी वो शान बाकी है! अपनी उड़ान में कितने वृक्षों से हम टकराएँगे..... उनसे न टूटकर बढ़ने वाली अभी वो तान बाकी है! आसमां को छूकर तारों से जब नाम लिखेंगे **तन्वी** तो पंक्षीयों की जुबां से निकलनी अभी वो गान बाकी है! ****