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यही है जिंदगी

जिंदगी कभी हंसा कर, कभी रुला कर गई। कुछ याद द‍िला कर तो कुुुछ भुला कर गई, कभी नींंद उड़ा कर तो कभी गहरी नींंद सुला कर गई। जिंदगी कभी हंसा कर, कभी रुला कर गई। कभी नफरत भुला कर कभी मोहब्बत स‍िखा कर गई, कभी इश्क में डुबा कर तो कभी क‍िसी की चाहत में झुला कर गई। जिंदगी कभी हंसा कर, कभी रुला कर गई। कभी गले लगा कर कभी गला काट कर गई, कभी गम द‍िया तो कभी खुशियां बांट कर गई। कभी आसमां में उड़ा कर कभी जमीं पर ग‍िरा कर गई, कभी झूठ को तो कभी हकीकत को द‍िखा कर गई। कभी वक्त काे खामोश कर कभी वक्त को ह‍िला कर गई, जिंदगी कभी हंसा कर, कभी रुला कर गई। कभी हमें वो जिता कर, तो कभी वो हरा कर गई, हर पल कुछ एहसास द‍िला कर तो कुछ महसूस करा कर गई। कभी श‍िकवा तो कभी हमसे ग‍िला कर गई, फ‍िर भी श‍िकायत नहीं तुझसे ऐ ज‍िंंदगी, क्योंक‍ि तू मुुुझेे एक फूल की तरह ख‍ि‍ला कर गई। -तन्वी सिंह 

कमाल की थी उसकी मोहब्बत

कमाल की थी उसकी मोहब्बत... दिल लगाया उसने दिल तोड़ने के लिए, हाथों को थामा उसने छोड़ने के लिए! कमाल की थी उसकी मोहब्बत... वादा किया था दूर नहीं जाने का, पर भूल गया वादा साथ निभाने का! कमाल की थी उसकी मोहब्बत... गहराई से तुझे जानता हूँ, कहता था, पर शक के घेरे में अक्सर वो रहता था! कमाल की थी उसकी मोहब्बत... देख मुझे वो गले लगाता भी था, होके दूर आँसू बहाता भी था ! कमाल की थी उसकी मोहब्बत.... रातों को मुझे वो जगाता भी था, बातों से अपनी सताता भी था! कमाल की थी उसकी मोहब्बत... रह नही पाता बिन तेरे, उसने कहा था भूल के हर दिन मुझे दूर भी रहा था कमाल की थी उसकी मोहब्बत... साथ किसी और का वो निभा गया, बस इतनी सी मोहब्बत वो दिखा गया! कमाल की थी उसकी मोहब्बत.. जाते जाते मुझे वो इल्जाम दे गया, मेरी चाहत को बेवफा नाम दे गया! कमाल की थी उसकी मोहब्बत! -तन्वी सिंह