सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फूलों की वादियों मे

 फूलों की वादियों मे़ मेरा भी बसेरा था, कुछ पल के लिए ही कोई तो मेरा था ! हर सुबह इंतजार में खुलती थी आँखें, वो भी क्या खूबसूरत सवेरा था! वो बरसात हमें मिलने न देती थी, ना जाने क्यों घटाअो ने हमे घेरा था! भूल ना पाई आज भी उस एहसास को, जब जूल्फों पे मेरे हाथ तुमने फेरा था! न जाने क्यों तुम छोड़ गए मुझे तन्हा, ये सॉसे ये धड़कन सब कुछ तो तेरा था !

आओगे क्या तुम

लौट   आओगे   क्या   तुम   उन   रास्तो   पे , जहाँ   हर   वक्त   मै   तेरा   इंतजार   करती   थी ! फिर   से   आओगे   क्या   उस   टूटे   आशियाने   मे , ये   आँखे   जहाँ   हर   वक्त   तेरा   दीदार   करती   थी ! उस बंजर   जमीं   पे   फिर   फूल   खिलाओगे   क्या , जो   हर   राहो   को   खूशबूदार   करती   थी ! उन   सूखे   पौधो   पे   फिर   बरसात   करोगे   क्या , जो   हर   राही   को   छायादार   करती   थी ! फिर   अँधेरी   रात   मे   चाँद   की   रोशनी   भरोगे   क्या , जहाँ   बैठ   हर   दिन   मै   तुझसे   इजहार   करती   थी ! ऐ   जानेवाले   एक   बार   सामने   आकर   तो   देखो , खामोशी   बत...

एक परिंदा

आसमां बनके वो मेरी हिफाज़त करता है, सलामत रहू मैं रब से इबादत करता है, बरसता है मेरे हर दर्द पे मरहम की तरह, जाने क्यों एक परिंदा मुझसे.... इतनी मोहब्बत करता है..! आसूँ का एक कतरा.... ज़मीं पे न गिरने देता है, हर बूँद को अपनी हथेली में थाम लेता है, न जाने वो कैसा फरिश्ता है, मुझे हँसाने की खातिर खुद रो देता है, मेरे लिए वो खुद को भी खो देता है, ऐसी वो मुझपे इनायत करता है, जाने क्यों एक परिंदा मुझसे...... इतनी मोहब्बत करता है....! दूर होकर भी दुरी का... एहसास वो होने नही देता, नींद भी आये तो वो सोने नही देता, सुन कर उसकी बातें..... होठों से मुस्कान हटती नही, रूठ जाने पे वो ऐसी शरारत करता है, जाने क्यों एक परिंदा मुझसे.... इतनी मोहब्बत करता है....!                                    

दर्द बाँट लो

हमने देखी है वो कश्तियाँ भी, जो किनारा ढूँढते-ढूँढते कही लहरों में खो जाती है, हमने देखी है वो आँखे भी, जो जाने कितने ख्वाब देखते देखते सो जाती है, हमने देखी है वो मासूम निगाहें भी, जो किसी की याद में जाने कितना रो जाती है, हमने देखी है वो ख़ामोशी भी, जो कुछ न कहते हुए भी हर बात वो कह जाती है, हमने देखी है वो बाहें भी, जो जाने कितने लाशों से लिपटी होती है, हमने देखे है वो हाथ भी, जो आखिरी साँस खत्म होने पे उन्हें जला देते है, हमने देखे है वो भूखे पेट भी, जिसकी भूख मिटने की खातिर.. लोग अपना जमीर भूला देते है, हमने देखी है वो गरीबी भी, जो रोटी न मिलने पे खुद को भूखा सुला देते है, हमने देखी है बच्चो की वो मासूमियत भी, जो दो पैसो की खातिर अपना बचपन गवां देते है, एहसास हो जाये गर हमे हर इंसान के दर्द का, इंतजार खत्म हो जाये उनका किसी हमदर्द का, ऐसा नहीं है की इंसानियत मर गई है, बस ऊपर उसके बुराई अपना घर कर गई है, अपने स्वार्थ में इतने मशगूल हो गए है हम, की खुद की पहचान धुलने लगे है, खो गए है अपनी ही जिंदगी में ऐसे, लोगो का दर्द बाँटना भ...

सफर नही हमसफर की बात थी

सफर नही हमसफर की बात थी,  हुई जब उनसे पहली मुलाकात थी!! अनजान ही थे एक दूसरे से हम, खामोशी थी ज्यादा अल्फ़ाज थे कम,  दिल में ही छुपी हमारी जज़्बात थी, सफर नही हमसफर की बात थी... हुई जब उनसे पहली मुलाकात थी!! वो नजरों से नजरें मिलाए जा रहे थे,  खुद को उनसे हम छुपाए जा रहे थे,  दोनों के होंठों पे मुस्कुराहट साथ थी,  सफर नही हमसफर की बात थी.. हुई जब उनसे पहली मुलाकात थी!! गयी थी मिलने मैं उनसे इस कदर,  मिली हो जैसे मुझे मोहब्बत की खबर,  जागकर बीतायी एक दिन पहले की रात थी,  सफर नही हमसफर की बात थी... हुई जब उनसे पहली मुलाकात था !! बातें उसकी दिल में घर करने लगी थी,  हाथों को मिलाया जब धड़कनें बढ़ने लगी थी,  बड़ी खूबसूरत मिली मुझे ये सौगात थी,  सफर नही हमसफर की बात थी... हुई जब उनसे पहली मुलाकात थी !!

जाने कहाँ आज वो हँसी खो गयी

                                     लबों पर खिलखिला के आती थी कभी,  जाने कहाँ आज वो हँसी खो गई! भटक रहे है जिन खुशियों की चाह में,  जाने कहाँ आज वो खुशी खो गई! रोते थे कभी हम बिलख बिलख के, जाने कहाँ आज वो नमी खो गई! महक जाते थे बदन  जिस मिटटी से, जाने कहाँ आज वो जमीं खो गई! हमारी आहट पाने भर से थिरक उठता था, आँगन की कहाँ आज वो हँसी खो गई! सोते थे कभी जो गहरी नींद मे हम, जाने कहाँ आज वो चैन खो गए, देखती थी आँखे जो प्यार की उम्मीद से,  जाने कहाँ आज वो नैन खो गए! भूल गए पैसो की चाह में रिश्तें-नातो को,  जाने कहाँ आज वो उनकी यादें खो गए! किये थे जो वादे अपनों के हाथ थामकर, जाने कहाँ आज वो वादे खो गए! जिसे देख भूल जाती थी हर दर्द मेरी माँ, दुनिया की भीड़ मे जाने कहाँ वो हँसी खो गई! जिंदगी की भाग-दौड़ मे हम उलझे इस तरह, कि पता भी न चला कब हमारी जिंदगी खो गई !

आसमां के नाम

                          यूही खिड़की पे बैठे बैठे, सुबह से शाम कर दी, जैसे अपनी ज़िंदगी उस आसमां के नाम कर दी, वो मुझे मै उसे बस देखती रही, खामोशी मे ही बातें उससे करती रही, जाने क्यों आसमां उदास था, कुछ बूँदे जब गिरी उसकी आँखो से, तो छूकर उन्हें एहसास हुआ, कि कोई दर्द उसके भी पास था, उसकी जिंदगी मे भी कोई खास था, मैने पूछा क्या हुआ है तुम्हें, उसने बूँदो की धार तेज कर दी, उस दिन आसमां रात भर रोया था, शायद उसने अपना प्यार खोया था, सुबह उसकी आँखो की बरसात कम थी, फिर भी उसकी आँखें थोड़ी नम थी, उस दिन भी आसमां खिला नही, शायद आज भी अपनी मुहब्बत से... वो मिला नही..... बादल बनकर आसमां का दर्द, जब जब सामने आता है, बनकर वो बारिस जमीं पे बरसता है, फिर लोगो का दिल भीगने को तरसता है, बारिस मे भीगकर सबके, होठो पे मुस्कान छा जाती है, आसमां भी मुस्कुरा उठता है... उनकी "मस्तानी" खुशी देखकर, भूल जाता है अपना गम, उनकी हँसी देखकर, आसमां गहराई मे.... छुपा के दर्द खिला होता ह...

याद है हमें आज भी

यूही नही लिखते हम अल्फ़ाज़ मोहब्बत का, याद है हमें आज भी वो साज मोहब्बत का! होता हर बातों मे जिक्र उसके मोहब्बत का, याद है हमें आज भी वो फिक्र मोहब्बत का! देखे थे हमने जो ख्वाब मोहब्बत का, बन के रह गया आज वो याद मोहब्बत का! लेते थे हम भी हर एक साँस मोहब्बत का, हुआ था हमें भी एक बार एहसास मोहब्बत का! मिला था हमें भी एक राही खास मोहब्बत का, आया था हमें भी वो सफर रास मोहब्बत का! कैसे भूलेंगे हम “तन्वी” वो रक्त मोहब्बत का, क्योकि याद है हमें आज भी वो वक्त मोहब्बत का!