दर्द बाँट लो

हमने देखी है वो कश्तियाँ भी,
जो किनारा ढूँढते-ढूँढते कही लहरों में खो जाती है,
हमने देखी है वो आँखे भी,
जो जाने कितने ख्वाब देखते देखते सो जाती है,
हमने देखी है वो मासूम निगाहें भी,
जो किसी की याद में जाने कितना रो जाती है,
हमने देखी है वो ख़ामोशी भी,
जो कुछ न कहते हुए भी हर बात वो कह जाती है,
हमने देखी है वो बाहें भी,
जो जाने कितने लाशों से लिपटी होती है,
हमने देखे है वो हाथ भी,
जो आखिरी साँस खत्म होने पे उन्हें जला देते है,
हमने देखे है वो भूखे पेट भी,
जिसकी भूख मिटने की खातिर..
लोग अपना जमीर भूला देते है,
हमने देखी है वो गरीबी भी,
जो रोटी न मिलने पे खुद को भूखा सुला देते है,
हमने देखी है बच्चो की वो मासूमियत भी,
जो दो पैसो की खातिर अपना बचपन गवां देते है,
एहसास हो जाये गर हमे हर इंसान के दर्द का,
इंतजार खत्म हो जाये उनका किसी हमदर्द का,
ऐसा नहीं है की इंसानियत मर गई है,
बस ऊपर उसके बुराई अपना घर कर गई है,
अपने स्वार्थ में इतने मशगूल हो गए है हम,
की खुद की पहचान धुलने लगे है,
खो गए है अपनी ही जिंदगी में ऐसे,
लोगो का दर्द बाँटना भूलने लगे है,
हर किसी के अंदर बैठा है एक सच्चा इंसान,
वक्त है अब भी उसे अब जगा दो,
बची है अब भी इंसानियत यहाँ ,
बढ़ाओ अपने हाथ और पूरी दुनिया को दिखा दो!




1 comment:

Powered by Blogger.