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जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

न होने दो

यूँ हर दिन इस कदर ऐसे..... हमसे अपनी मुलाकात न होने दो!! हमें खामोश ही रहने दो तुम..... हमसे खुद की इतनी बात न होने दो!! कही हो न जाए हमें तुझसे मोहब्बत.... लफ़्जों से अपनी ऐसी बरसात न होने दो!! हम तन्हा अच्छे है तन्हा ही रहने दो..... बैठ कर साथ मेरे गहरी रात न होने दो!! जिस एहसास को मैं कर न सकूँ बयां... मेरे अंदर पनपने वो जज्बात न होने दो!! यूँ ही हसीन है अपनी दुनिया ऐ हमदम... मेरी जिंदगी को मोहब्बत की सौगात न होने दो!!

तुम याद नही आते

      कैसे कहूँ कि मुझे अब तुम याद नही आते! तेरे लिए लबों में अब फरियाद नही आते!! तुमने दिल में मोहब्बत का दीप जला दिया! कैसे कहूँ धड़कनों को तुम याद नही आते!! सीखाया तुमने रातों में प्यार भरी बातें करना! कैसे कहूँ बंद होने पे आँखे तुम याद नही आते!! खुलती हर सुबह नींद तेरे फोन की घंटी से ही! कैसे कहूँ उसकी हर घंटी में तुम याद नही आते!! आँखे बरस जाती तेरी तस्वीर तेरी बातें सोचकर! कैसे कहूँ आँसूओं की बूँद में तुम याद नही आते!! पढ़ लेती तेरे वो खत सारे जब बेकरारी बढ़ती! कैसे कहूँ किसी भी लम्हें में तुम याद नही आते!! पकड़ा था तुमने मेरी हथेली कभी बड़े प्यार से! कैसे कहूँ हथेली की खुशबू में तुम याद नही आते!!  बिछड़े थे हम दोनों एक दूजे को गले लगाकर कभी! कैसे कहूँ मेरी हर एक साँस  को तुम याद नही आते!!

दिल कहता है

ख्वाहिश तो बस इतनी है, तेरे पहलू में जिंदगी गुजार दू, सारी जिंदगी अपनी तुझपे वार दू, तू सोच भी न सके उस गहराई को, दिल कहता है.... इतना मैं तुझे बेइंतहा प्यार दू! तेरे हर दर्द को खुद में समेट लू, अपनी सारी खुशियाँ तुझमे लपेट दू, तुझे पाने की खातिर जमीं पे रब को उतार दूू, दिल कहता है........ इतना मैं तुझे बेइंतहा प्यार दू! तेरी आँखों में आसूँ कभी आने न दू, तेरे होठों से मुस्कराहट मैं जाने न दू, इतनी मोहब्बत भर दू तेरे दिल में ऐ दिलबर, किसी और को उसमे समाने न दू, चाहत की खुशबू से तेरी जिंदगी मैं सवाँर दू, दिल कहता है........ इतना मैं तुझे बेइंतहा प्यार दू!

एक हरी पती

वो सूखा पेड़ जिसकी पतियाँ सूख कर, चारों तरफ हवाओं मे बिखरी पड़ी थी, लेकिन आज भी उस पेड़ में, कुछ हरी पतियाँ नजर आती थी, घूमते घमते मैं आज भी उस, पेड़ के ही नीचे जा बैठी, अचानक उस पेड़ की एक हरी पती, हौले से मेरी गोद में आ गिरी, उस खूबसूरत पती को उठा कर, अपने बाजू में प्यार से रख दी, और अपनी ही दुनिया में खो गई, फिर एक मीठी सी आवाज, मेरे कानों में बजने लगी, नजरों ने जब खुद को घूमाया, तो ये एहसास हुआ कि, तो वो आवाज उस पती की थी, जो मुझसे बार बार पूछ रही थी, तुम क्यों हर दिन इस पेड़, के ही नीचे आकर बैठती हो, ये चारों तरफ हरे भरे पेड़, तुम्हें छायादार करते है फिर भी तुम, इस सूखे पेड़ के नीचे क्यों..? उसकी मासूम सवालों से जाने क्यों, मेरी आँखो से आँसू छलक गए, और मेरी आँसूओ की एक बूँद, वो खुद में ही समेट ली और, बड़ी मासूमियत से कहा, "लगता है कोई तेरे दिल, के रास्तें से गुजरकर, अपने निशां छोड़ गया है!" फिर एक हवा के झोके से, वो मेरी गोद मे आ गई, और बडे़ प्यार से कहा...ओ रानी, तेरी आँसू की एक बूँद से, मुझपे जो धू...

दर्द की दहलीज

क्यों जिंदगी आज भी, उसी रास्तें पे खड़ी है, क्यों इंतजार मे ये, आँखें वही गड़ी है, जो चला गया दूर, दिल उसे क्यों भूल नही पाता, यादों की किताब से, नाम उसका क्यों धूल नही पाता, ये दर्द का जो मंजर है, चूभता जैसे सीने मे खंजर है, दर्द ये होता है इतना गहरा, लगता जैसे समंदर है, ठहर के उन रास्तों पे, दर्द में हम क्यों जीते है, लबों पे झूठी मुस्कान बिखेड़ कर, आँसूओं को हम क्यों पीते है, दिल टूट भी जाए अगर, तुम टूट जाना नही, जिंदगी से कभी रूठ जाना नही, बढ़ाओगे कदम हौसलों के साथ..तो, दर्द की दहलीज पार कर जाओगे, करते हो आज जिस जिंदगी से नफरत, उसी जिंदगी से फिर प्यार कर जाओगे! *****

Judaai Poem|| Wo Meri Na Ho Saki

उसे पाने की चाहत पूरी न हो सकी , हो गयी वो किसी और की मेरी ना हो सकी , ना मै बेवफा था ,ना वो बेवफा थी , जानें क्यों जिंदगी हमसे खफा थी , रह गयी कमी शायद मेरे प्यार में, ना थी कोई कमी मेरे यार में , उसकी आँखों से भी आँसू छलक रहे थे, मोहब्बत भी साफ झलक रहे थे, आँसुओं के उसके रोक न सका, दूर उसके गम को कर ना सका, उठ रही थी डोली,बज रही थी शहनाई, अपने गम को वो जुबां पे ना लाई, हो गयी फिर हम दोनों की जुदाई, जुदा हो गई वो मेरी नजर से, ना हो पाई जुदा मेरे जिगर से, फिर भी खुदा से ये इबादत करता हु, आबाद रखना उसे जिससे इतनी मोहब्बत करता हु। *****

वफ़ा के फूल

      वफ़ा के फूल जो खिलाई उसके दिल मे! न जाने क्यों आज वो मुरझाने लगे!! होती थी जहाँ कभी फूलों की बौछार! आज वही सिर्फ कॉटे ही नजर आने लगे!! होता था जहाँ कभी खुशियों का सवेरा! वही गम आज अपना घर बनाने लगे!! देती थी जहाँ कभी चाँदनी शीतल छाँव! वही आज अँधेरे खुद को सजाने लगे!! उनकी वफ़ाओं को मैनें सजा के रखा था! लेकिन मेरे फूलों को ही वो मिटाने लगे!! खिले थे जब फूल प्यार के उनके दिल में! वो बीता वक्त मुझे वो याद दिलाने लगे!! तैरने लगी थी मैं इश़्क के समंदर में! मोहब्बत मे खुद को जब मिलाने लगे!! मैं गुनहेगार और वो बेकसूर हो गये है! धीरे-धीरे मुझसे ये वो जताने लगे!! कभी जो हमें दिलों जा से चाहा करते थे! डर-डर के आज वो नाम मेरा बताने लगे!! क्या हुआ मेरी फूलों की खूशबू वो न समझा! उसे तो मोहब्बत समझने में ही जमाने लगे!! फिर भी दिल मुस्कुरा रहा है ये सोचकर! कि दर्द में भी मोहब्बत हम कमाने लगे!!

दिल स्वाभिमानी था

एक बार तो आओगे मुलाकात करने! बीती हुई बातों के बारे मे बात करने!! हमे भी तो इंतजार है उस पल का ! जब फिर तेरा सामने से दीदार होगा!! तुम क्या कहोगे और मैं क्या कहूँगी! दोनों को इस बात का इंतजार होगा!! यकीं तो है तेरे दिल से याद जाएगी नही! लबों पे मेरे लिए फरियाद आएगी नही!! हमें न पता था सच कहना एक गुनाह है! शायद झूठ कहना ही आज एक पनाह है!! शक की बुनियाद पे तुमने क्या क्या कहा था! खामोश रहके मेरा दिल हर बात वो सहा था!! तेरे अल्फ़ाज़ों में हमदम बेरूखी थी इतनी! न देखी थी किसी के दिल मे नफरत उतनी!! अपनी मोहब्बत से इतनी मजबूर हो गई! बिना कुछ कहे ही मै तुझसे दूर हो गई!! ना झूकी कभीे  तेरे आगे मोहब्बत में! क्योंकि तुम थे किसी और की कुर्बत मे!! नादान थे समझे नही इश़्क तेरा बेमानी था! दूर गये तुम क्योंकि दिल तेरा अभिमानी था! न देखी कभी पलट के प्यार तेरा नाकामी था! छोड़ दी तुझे क्योंकि दिल मेरा भी स्वाभिमानी था !!

एक खूबसूरत दिल

आई थी मैं भी उस रात, जा रही थी जब तेरी बारात, घोड़े पे बैठ सहरा बाँधे, जब तुम घर से निकले थे, दिल में अरमां जाने कितने पिघले थे, सोची एक पल के लिए, आकर पास तेरे मै पूछ लू, कि कहाँ गये वो वादें, जो तुमने मुझसे किए थे, कहाँ गई वो मोहब्बत, जो तुमने मुझे दिए थे, फिर मेरे दिल ने कहा- ऐ मेरी शहजादी, न सोच तू ऐसा, उसकी खुशी के बीच, अपना दर्द न आने दे, वो निकला है अपने सफर पे, उसे अपनी मंजिल तक जाने दे, तेरी एक गलती से जाने, कितने लोग रूठ जाएँगे, तेरे एक कदम से जाने, कितने रिश्ते टूट जाएँगे, तू करती है उससे मोहब्बत, तो उसकी खुशी मे तू, अपनी खुशी मिला दे, सारे नफरतों को तू, आज अभी भूला दे, नफरत की आग से जाने, कितन घर जले है, मोहब्बत की बारिस से, पत्थर दिल भी पिघले है, ऐ दिल..........तूने भी, कितना दर्द सहा है, तू भी उसके लिए तड़पा है, फिर आज तू ऐसी, बातें क्यों करता है, दिल ने मुस्कुरा के कहा- इसी सहन से एहसास हुआ, इबादत क्या होती है, इसी तड़पन ने बता़या, मोहब्बत क्या होती है, पोछ ले तू अपने आँसू, अपने गमों ...

दो बूँद मोहब्बत के

अपने अरमानों को स्याही में सजाकर जब कोरे कागज पे उतारी तो दर्द को देख कलम भी जाने क्यों थम सी गयी । हर अल्फा़ज़ धुॅंधले दिखने लगे, तो एहसास हुआ आॅखों मे जैसे समन्दर की लहरें उठी है। लाख कोशिशे की ये लहरे बाहर न आ पाये। लेकिन ये मोहब्बत की बारिस थी । इन्हे अगर रोक लेती तो ये नासूर बन जाते। तो दिल ने कहा आज इन्हें न रोको, बह जाने दो । न चाहते हुए भी दों बूॅद मोहब्बत के जब कागज पर गिर पड़े । तो दर्द जैसे कुछ कम सा हुआ तो कलम फिर से चल पड़ी! कुछ एहसास जो दबे थे दिल की गहराइयो में कहीं,कुछ बीते पलो की यादें आज भी दफन है कही । उन एहसासो को उन यादों को पन्नो पे उतारी। तो दिल को जाने क्यो एक सुकुन मिला।   ’'आँखें जैसे गीली होने लगी,       हाथों से उन्हे छुआ तो मालूम हुआ,       फिर ये आँखें नीली होने लगी।’’ ये आॅंसू भी जाने क्यों पलकों से बाहर आ जाते है। और हर अल्फ़ाज़ों को यूॅ भींगो जाते है, जैसे जाने कितनी वर्षो से ये सूखी पड़ी है। कुछ कहानियाँ अक्सर अधूरी रह जाती है! कभी पन्ने कम प़ड़ जाते है तो कभी स्याही सूख जाती है । इंसान कितना भी ...