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एक हरी पती

वो सूखा पेड़ जिसकी पतियाँ सूख कर,
चारों तरफ हवाओं मे बिखरी पड़ी थी,
लेकिन आज भी उस पेड़ में,
कुछ हरी पतियाँ नजर आती थी,
घूमते घमते मैं आज भी उस,
पेड़ के ही नीचे जा बैठी,
अचानक उस पेड़ की एक हरी पती,
हौले से मेरी गोद में आ गिरी,
उस खूबसूरत पती को उठा कर,
अपने बाजू में प्यार से रख दी,
और अपनी ही दुनिया में खो गई,
फिर एक मीठी सी आवाज,
मेरे कानों में बजने लगी,
नजरों ने जब खुद को घूमाया,
तो ये एहसास हुआ कि,
तो वो आवाज उस पती की थी,
जो मुझसे बार बार पूछ रही थी,
तुम क्यों हर दिन इस पेड़,
के ही नीचे आकर बैठती हो,
ये चारों तरफ हरे भरे पेड़,
तुम्हें छायादार करते है फिर भी तुम,
इस सूखे पेड़ के नीचे क्यों..?
उसकी मासूम सवालों से जाने क्यों,
मेरी आँखो से आँसू छलक गए,
और मेरी आँसूओ की एक बूँद,
वो खुद में ही समेट ली और,
बड़ी मासूमियत से कहा,
"लगता है कोई तेरे दिल,
के रास्तें से गुजरकर,
अपने निशां छोड़ गया है!"
फिर एक हवा के झोके से,
वो मेरी गोद मे आ गई,
और बडे़ प्यार से कहा...ओ रानी,
तेरी आँसू की एक बूँद से,
मुझपे जो धूल थे वो धूल गए,
तो एक बार अपने आँसूओ की बरसात से,
उस राहगीर के निशां को धो दो,
और उसपे मुस्कुराहट के फूल बो दो,
उन बातों में एक सच्चाई नजर आई,
उसकी मासूम बातों से मेरे होठों पे,
हल्की सी मुस्कान ने दस्तक दे दी,
फिर कुछ देर तक खामोशी छाई रही,
ऐसा लगा अब न सवाल है न जवाब,
लेकिन धीरे से फिर एक आवाज आई,
यही आखिर तुम क्यों बैठती हो..?
जानें क्यों उसकी बातों ने,
मेरी जिंदगी की वो किताब खोल दी,
जिसे जाने कितनी गहराई में,
मैं उसे दबा के रखी थी,
जहाँ वर्षो से उसकी तस्वीर,
मैं छुपा के रखी थी,
आज उस पेड़ की मिट्टी को हटाना पड़ा,
इसकी ही यादें दफन है यहाँ,
रख के पत्थर अपने दिल पे,
आज हरी पती को ये बताना पड़ा !
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