लबों पर खिलखिला के आती थी कभी,
जाने कहाँ आज वो हँसी खो गई!भटक रहे है जिन खुशियों की चाह में,
जाने कहाँ आज वो खुशी खो गई!
रोते थे कभी हम बिलख बिलख के,
जाने कहाँ आज वो नमी खो गई!
महक जाते थे बदन जिस मिटटी से,
जाने कहाँ आज वो जमीं खो गई!
हमारी आहट पाने भर से थिरक उठता था,
आँगन की कहाँ आज वो हँसी खो गई!
सोते थे कभी जो गहरी नींद मे हम,
जाने कहाँ आज वो चैन खो गए,
देखती थी आँखे जो प्यार की उम्मीद से,
जाने कहाँ आज वो नैन खो गए!
भूल गए पैसो की चाह में रिश्तें-नातो को,
जाने कहाँ आज वो उनकी यादें खो गए!
किये थे जो वादे अपनों के हाथ थामकर,
जाने कहाँ आज वो वादे खो गए!
जिसे देख भूल जाती थी हर दर्द मेरी माँ,
दुनिया की भीड़ मे जाने कहाँ वो हँसी खो गई!
जिंदगी की भाग-दौड़ मे हम उलझे इस तरह,
कि पता भी न चला कब हमारी जिंदगी खो गई !
मैं जब उसके घूमने जय करता था... बो बस मुझे रिझाया करती थी हसाया करती थी...
जवाब देंहटाएंउसकी एक एक बात याद है... न जाने आखिर गम क्यो हो गई....
उसके कानों की बाली की सुगन्ध हर रोज अलग ही चमका करती थी... कहती थी मुझे सजना बहुत पसंद है..
कहती थी बस तुम्हारे लिये... न जाने आखिर गम क्यों हो गई....
उसके लब्ज़ों को मैंने नज़दीक से देखा है घण्टों घर से समय चुराकर हम दोनों ने एक कमरे में बैठकर...
न जाने बो मिठास गम क्यों हो गईं......
बहुत खूब लिखा है तन्वी .... वाह... आपकी हर एक लाइन मैं हर बार पढ़ता हूँ...Keep it up...
जवाब देंहटाएंThank u....so muchhh !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत...बहुत...धन्यवाद आपका !
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