जहाँ हर वक्त मै तेरा इंतजार करती थी!
फिर से आओगे क्या उस टूटे आशियाने मे,
ये आँखे जहाँ हर वक्त तेरा दीदार करती थी!
उस बंजर जमीं पे फिर फूल खिलाओगे क्या,
जो हर राहो को खूशबूदार करती थी!
उन सूखे पौधो पे फिर बरसात करोगे क्या,
जो हर राही को छायादार करती थी!
फिर अँधेरी रात मे चाँद की रोशनी भरोगे क्या,
जहाँ बैठ हर दिन मै तुझसे इजहार करती थी!
ऐ जानेवाले एक बार सामने आकर तो देखो,
खामोशी बताएगी मै तुमसे कितना प्यार करती थी!
वाहः बहुत खूब
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