
कलम खुद को जब कागज के नाम करती है!!
करती है शिकायतें वो जी भर के मुझसे!
कागज से मिले बिना जब वो शाम करती है!!
रूठ जाती है कभी-कभी वो मुझसे इस कदर!
सुबह से जैसे कितना वो काम करती है!!
नींद भी आँखों के करीब खुद को लाती नही!
दूर से ही उसे वो नमस्ते सलाम करती है!!
वक्त भी मुस्कुरा के देखता है उसे रातभर!
जब कलम अपनी मोहब्बत सरेआम करती है!!
- तन्वी सिंह
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