वो रात डूबी तो थी तेरी यादों की लहर में,
रखा था कदम तुमने जब मेरे ही शहर में!
सुबह का इस कदर इंतजार था मुझे,
कि खुलती रही आँखे हर एक पहर में!
तेरे दीदार ने तरसाया था इतना मुझे,
कि वक्त दिया शाम का निकले दोपहर में!
तुझे देख भूल जाती हूँ तेरी बेरुखी बातें,
सोचती हूँ कैसे लूँ तुझे अपनी कहर में!
लिखी है 'तन्वी' गजल तेरे एहसास की,
क्योंकि तैर रही है मोहब्बत के बहर में!
सुबह का इस कदर इंतजार था मुझे,
कि खुलती रही आँखे हर एक पहर में!
तेरे दीदार ने तरसाया था इतना मुझे,
कि वक्त दिया शाम का निकले दोपहर में!
तुझे देख भूल जाती हूँ तेरी बेरुखी बातें,
सोचती हूँ कैसे लूँ तुझे अपनी कहर में!
लिखी है 'तन्वी' गजल तेरे एहसास की,
क्योंकि तैर रही है मोहब्बत के बहर में!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें