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संदेश

न होने दो

यूँ हर दिन इस कदर ऐसे..... हमसे अपनी मुलाकात न होने दो!! हमें खामोश ही रहने दो तुम..... हमसे खुद की इतनी बात न होने दो!! कही हो न जाए हमें तुझसे मोहब्बत.... लफ़्जों से अपनी ऐसी बरसात न होने दो!! हम तन्हा अच्छे है तन्हा ही रहने दो..... बैठ कर साथ मेरे गहरी रात न होने दो!! जिस एहसास को मैं कर न सकूँ बयां... मेरे अंदर पनपने वो जज्बात न होने दो!! यूँ ही हसीन है अपनी दुनिया ऐ हमदम... मेरी जिंदगी को मोहब्बत की सौगात न होने दो!!

तुम याद नही आते

      कैसे कहूँ कि मुझे अब तुम याद नही आते! तेरे लिए लबों में अब फरियाद नही आते!! तुमने दिल में मोहब्बत का दीप जला दिया! कैसे कहूँ धड़कनों को तुम याद नही आते!! सीखाया तुमने रातों में प्यार भरी बातें करना! कैसे कहूँ बंद होने पे आँखे तुम याद नही आते!! खुलती हर सुबह नींद तेरे फोन की घंटी से ही! कैसे कहूँ उसकी हर घंटी में तुम याद नही आते!! आँखे बरस जाती तेरी तस्वीर तेरी बातें सोचकर! कैसे कहूँ आँसूओं की बूँद में तुम याद नही आते!! पढ़ लेती तेरे वो खत सारे जब बेकरारी बढ़ती! कैसे कहूँ किसी भी लम्हें में तुम याद नही आते!! पकड़ा था तुमने मेरी हथेली कभी बड़े प्यार से! कैसे कहूँ हथेली की खुशबू में तुम याद नही आते!!  बिछड़े थे हम दोनों एक दूजे को गले लगाकर कभी! कैसे कहूँ मेरी हर एक साँस  को तुम याद नही आते!!

दिल कहता है

ख्वाहिश तो बस इतनी है, तेरे पहलू में जिंदगी गुजार दू, सारी जिंदगी अपनी तुझपे वार दू, तू सोच भी न सके उस गहराई को, दिल कहता है.... इतना मैं तुझे बेइंतहा प्यार दू! तेरे हर दर्द को खुद में समेट लू, अपनी सारी खुशियाँ तुझमे लपेट दू, तुझे पाने की खातिर जमीं पे रब को उतार दूू, दिल कहता है........ इतना मैं तुझे बेइंतहा प्यार दू! तेरी आँखों में आसूँ कभी आने न दू, तेरे होठों से मुस्कराहट मैं जाने न दू, इतनी मोहब्बत भर दू तेरे दिल में ऐ दिलबर, किसी और को उसमे समाने न दू, चाहत की खुशबू से तेरी जिंदगी मैं सवाँर दू, दिल कहता है........ इतना मैं तुझे बेइंतहा प्यार दू!

एक हरी पती

वो सूखा पेड़ जिसकी पतियाँ सूख कर, चारों तरफ हवाओं मे बिखरी पड़ी थी, लेकिन आज भी उस पेड़ में, कुछ हरी पतियाँ नजर आती थी, घूमते घमते मैं आज भी उस, पेड़ के ही नीचे जा बैठी, अचानक उस पेड़ की एक हरी पती, हौले से मेरी गोद में आ गिरी, उस खूबसूरत पती को उठा कर, अपने बाजू में प्यार से रख दी, और अपनी ही दुनिया में खो गई, फिर एक मीठी सी आवाज, मेरे कानों में बजने लगी, नजरों ने जब खुद को घूमाया, तो ये एहसास हुआ कि, तो वो आवाज उस पती की थी, जो मुझसे बार बार पूछ रही थी, तुम क्यों हर दिन इस पेड़, के ही नीचे आकर बैठती हो, ये चारों तरफ हरे भरे पेड़, तुम्हें छायादार करते है फिर भी तुम, इस सूखे पेड़ के नीचे क्यों..? उसकी मासूम सवालों से जाने क्यों, मेरी आँखो से आँसू छलक गए, और मेरी आँसूओ की एक बूँद, वो खुद में ही समेट ली और, बड़ी मासूमियत से कहा, "लगता है कोई तेरे दिल, के रास्तें से गुजरकर, अपने निशां छोड़ गया है!" फिर एक हवा के झोके से, वो मेरी गोद मे आ गई, और बडे़ प्यार से कहा...ओ रानी, तेरी आँसू की एक बूँद से, मुझपे जो धू...

दर्द की दहलीज

क्यों जिंदगी आज भी, उसी रास्तें पे खड़ी है, क्यों इंतजार मे ये, आँखें वही गड़ी है, जो चला गया दूर, दिल उसे क्यों भूल नही पाता, यादों की किताब से, नाम उसका क्यों धूल नही पाता, ये दर्द का जो मंजर है, चूभता जैसे सीने मे खंजर है, दर्द ये होता है इतना गहरा, लगता जैसे समंदर है, ठहर के उन रास्तों पे, दर्द में हम क्यों जीते है, लबों पे झूठी मुस्कान बिखेड़ कर, आँसूओं को हम क्यों पीते है, दिल टूट भी जाए अगर, तुम टूट जाना नही, जिंदगी से कभी रूठ जाना नही, बढ़ाओगे कदम हौसलों के साथ..तो, दर्द की दहलीज पार कर जाओगे, करते हो आज जिस जिंदगी से नफरत, उसी जिंदगी से फिर प्यार कर जाओगे! *****

Judaai Poem|| Wo Meri Na Ho Saki

उसे पाने की चाहत पूरी न हो सकी , हो गयी वो किसी और की मेरी ना हो सकी , ना मै बेवफा था ,ना वो बेवफा थी , जानें क्यों जिंदगी हमसे खफा थी , रह गयी कमी शायद मेरे प्यार में, ना थी कोई कमी मेरे यार में , उसकी आँखों से भी आँसू छलक रहे थे, मोहब्बत भी साफ झलक रहे थे, आँसुओं के उसके रोक न सका, दूर उसके गम को कर ना सका, उठ रही थी डोली,बज रही थी शहनाई, अपने गम को वो जुबां पे ना लाई, हो गयी फिर हम दोनों की जुदाई, जुदा हो गई वो मेरी नजर से, ना हो पाई जुदा मेरे जिगर से, फिर भी खुदा से ये इबादत करता हु, आबाद रखना उसे जिससे इतनी मोहब्बत करता हु। *****

वफ़ा के फूल

      वफ़ा के फूल जो खिलाई उसके दिल मे! न जाने क्यों आज वो मुरझाने लगे!! होती थी जहाँ कभी फूलों की बौछार! आज वही सिर्फ कॉटे ही नजर आने लगे!! होता था जहाँ कभी खुशियों का सवेरा! वही गम आज अपना घर बनाने लगे!! देती थी जहाँ कभी चाँदनी शीतल छाँव! वही आज अँधेरे खुद को सजाने लगे!! उनकी वफ़ाओं को मैनें सजा के रखा था! लेकिन मेरे फूलों को ही वो मिटाने लगे!! खिले थे जब फूल प्यार के उनके दिल में! वो बीता वक्त मुझे वो याद दिलाने लगे!! तैरने लगी थी मैं इश़्क के समंदर में! मोहब्बत मे खुद को जब मिलाने लगे!! मैं गुनहेगार और वो बेकसूर हो गये है! धीरे-धीरे मुझसे ये वो जताने लगे!! कभी जो हमें दिलों जा से चाहा करते थे! डर-डर के आज वो नाम मेरा बताने लगे!! क्या हुआ मेरी फूलों की खूशबू वो न समझा! उसे तो मोहब्बत समझने में ही जमाने लगे!! फिर भी दिल मुस्कुरा रहा है ये सोचकर! कि दर्द में भी मोहब्बत हम कमाने लगे!!