वो सूखा पेड़ जिसकी पतियाँ सूख कर, चारों तरफ हवाओं मे बिखरी पड़ी थी, लेकिन आज भी उस पेड़ में, कुछ हरी पतियाँ नजर आती थी, घूमते घमते मैं आज भी उस, पेड़ के ही नीचे जा बैठी, अचानक उस पेड़ की एक हरी पती, हौले से मेरी गोद में आ गिरी, उस खूबसूरत पती को उठा कर, अपने बाजू में प्यार से रख दी, और अपनी ही दुनिया में खो गई, फिर एक मीठी सी आवाज, मेरे कानों में बजने लगी, नजरों ने जब खुद को घूमाया, तो ये एहसास हुआ कि, तो वो आवाज उस पती की थी, जो मुझसे बार बार पूछ रही थी, तुम क्यों हर दिन इस पेड़, के ही नीचे आकर बैठती हो, ये चारों तरफ हरे भरे पेड़, तुम्हें छायादार करते है फिर भी तुम, इस सूखे पेड़ के नीचे क्यों..? उसकी मासूम सवालों से जाने क्यों, मेरी आँखो से आँसू छलक गए, और मेरी आँसूओ की एक बूँद, वो खुद में ही समेट ली और, बड़ी मासूमियत से कहा, "लगता है कोई तेरे दिल, के रास्तें से गुजरकर, अपने निशां छोड़ गया है!" फिर एक हवा के झोके से, वो मेरी गोद मे आ गई, और बडे़ प्यार से कहा...ओ रानी, तेरी आँसू की एक बूँद से, मुझपे जो धू...
उसकी उंगलियों की चुभन मुझे थाम रही थी,,,
जवाब देंहटाएंन जाने कितने दिन बाद इस चुभन ने मेरी सांसो को बढ़ाया,,,
दर्द की आहें भरती चाह ने ठहर जाने का लालच दिया मुझे,,,
बस उसके छूने का बस आदी सा हो गया हूँ अब,,,
न जाने इस चुभन का दर्द कब वरसात के संग आएगा,,,
तुम अभी यहीं ठहर जाओ न अपनी उंगलियों का अहसास का सफर बाकी जो है,,,✍✍����
,✍✍✍�� संदीप ��✍✍✍
Achhi hai lines !
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंShukriya...aapka !
हटाएं