मिला था वो मुझे वर्षों इस कदर।
जैसे मिली थी मेरी मोहब्बत से नजर।।
आंखों ही आंखों में उसने दिल चुरा लिया।
कुछ वक्त में ही मेरी नींद उड़ा लिया।।
पलट कर एक दूसरे को देखते हर मोड़ पर।
फिर हट जाती नजर सड़कों के शोर पर।।
इश्क की राहों में कदम हम बढ़ा रहे थे।
दिल को मोहब्बत की किताब पढ़ा रहे थे।।
हर दिन यूं ही हमारी मुलाकात होती।
आंखों की आंखों से ही बस बात होती।।
वक्त की करवट से हो गए हम दूर।
कहां ढूंढे उसे इतने थे हम मजबूर।।
फिर भी आंखें उसका इंतजार करती रही।
यादों से ही उसके बस प्यार करती रही।।
वर्षों बाद आया जब वह सामने।
दिल को लगी मैं जोरो से थामने ।।
वह मुस्कुरा कर मेरा हाल पूछ बैठे।
हो गए कितने वह साल पूछ बैठे ।।
हमने पूछा जब उनसे ख्याल मोहब्बत का।
उसने जिक्र किया किसी और की कुर्बत का।।
दुआओं के साथ मोहब्बत से उसे आजाद कर दिया।
और हाथों ने थाम कर कलम मुझे आबाद कर दिया।।
कुर्बत - नजदीकी
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